षटतिला एकादशी पर दे तिल की यज्ञ आहुति
षटतिला एकादशी के दिन व्रत पूजन करने से मन के कलुषित विचार नष्ट होते हैं। इस व्रत में तिल का विशेष महत्व है।
षटतिला एकादशी का महत्व
माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यह एकादशी समस्त पापों को नष्ट करने वाली तथा दिव्य उत्कृष्ट गुणों को प्रदान करने वाली है। इस एकादशी व्रत एवं पूजन करने वाले मनुष्यों के मन के सारे कलुषित विचार नष्ट हो जाते हैं और वह राग, द्वेष रहित होकर सदाचारी, जीवन जीने के लिए खुद ही कटिबद्ध हो जाता है। इस एकादशी के बारे में कहा जाता है कि:
तिल होमः तिलभोजनश्च, तिलस्नायीतिलोउती,तिल होमी तिलोदिकी।
तिलभुक, तिलदाता च षटतिला पापनाशिनी।।
अर्थात तिल से हवन, तिलयुक्त भोजन, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल का उबटन, तिल का द्रक, तिल मिश्रित जल का पान व तर्पण ये छह कर्म समस्त पाप नाशक कहे गए हैं। इन्हें धारण करने के कारण ही इसे षटतिला एकादशी कहा गया है। इस दिन तिल से भरा पात्र तथा काली गाय दान करने का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में वर्णित है। माना जाता है कि इन तिलों को बोने से जितनी शाखाएं उत्पन्न होती है, उतने हजार वर्षों तक दानदाता व्यक्ति स्वर्ग लोक में प्रतिष्ठित होकर श्रीहरि की अनुकंपा पाता है और उनके दर्शन का पूर्ण पाता है। इस बारे में दालभ्य एवं पुलत्स्य ऋषि की कथा भी प्रचलित है।
षटतिला एकादशी पूजन विधि
षटतिला एकादशी के दिन प्रातः काल स्नानादि के द्वारा तन मन से पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके निर्मल हृदय से शंख, चक्र, गदा से विभूषित श्री हरि विष्णु की प्रतिमा या चित्र अपने सम्मुख स्थापित कर पूर्वाभिमुख होकर आसन, वस्त्र, चंदन, अरगना, कपूर, फल-फूल, तुलसी पत्र, नैवेद् आदि यथाशक्ति समर्पित कर विधिपूर्वक एवं भक्ति भाव से पूरे मनोयोग के साथ अर्चना करनी चाहिए। तत्पश्चात 108 पिण्डिकाऑ पर तिल से यज्ञ आहुति समर्पित करनी चाहिए। यज्ञाहुति करते समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण 108 बार करना चाहिए। हवन के पश्चात भगवान श्री कृष्ण के नाम का निरंतर जप करते हुए कुम्हड़े ,नारियल अथवा बिजौर के फल से श्री कृष्ण जी को अर्घ अर्पित करना चाहिए। समस्त पूजन सामग्रियों के अभाव में 100 सुपारियों से अर्घ्य देने का भी विधान है।
अर्घ्य मंत्र :
कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव।
संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ॥
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन ।
सुब्रह्मण्य नमस्तेSस्तु महापुरुष पूर्वज ॥
गृहाणार्ध्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।
अर्थात हे सच्चिदानंद स्वरूप भगवान श्री कृष्ण ,आप अत्यंत दयालु हैं। हम आश्रयहीन जीवों के आप आश्रय दाता बनिए। हम इस संसार रूपी समुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न हो। हे कमलनाथ, विश्वभावन सुब्रमण्यम महापुरुष। सबके पूर्वज आपको नमस्कार है। हे जगतपते। मेरा दिया हुआ अर्घ्य आप मां भगवती लक्ष्मी के साथ स्वीकार करें। हमारे समस्त दुखों को दूर कर हमें सुख शांति प्रदान करें।
कुछ भूल हो जाने पर श्री कृष्ण मंत्र “ॐ क्र कृष्णाय नमः” का जप श्रेय कर है।